प्रदेश सरकार में इन दिनों निगम मंडलों को लेकर चर्चा जोरों पर है। जीडीए और साडा किसे दिया जाए। इसका हल निकालने के लिए कई फार्मूला पर विचार मंथन चला । लेकिन हैरान कर देने वाली बात है कि राजनीति के कुशल कारीगर इस मसले पर जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इनका मानना है कि सरकार की अनायास समय नष्ट करने की आदत बनती जा रही है। कारण सभी अच्छी तरह जानते हैं कि जीडीए किसे मिलेगा और साडा किसे दिया जाएगा। सीधी सी बात है यह दोनों ही विभाग केंद्रीय मंत्री सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खासम खास को दिए जाएंगे। इसलिए इसमें दिमाग खफाना बेवकूफी है। खबरी दाऊ कहिन है कि शायद इसीलिए राजनीति को समझना कठिन कहा जाता है। देखिए ना विशेषज्ञों ने कितनी आसानी से कह दिया कि जीडीए और साडा सिंधिया एवं नरेंद्र सिंह तोमर के विश्वास पात्रों को मिलेगा। जबकि सरकार के सामने इन विभागों का आवंटन चुनौती बन रहा है। अंदर की बात है कि पार्टी हाईकमान को निर्णय लेने में एक एक कदम फूंक फूंक कर रखना पड़ रहा है।
प्रदेश सरकार में इन दिनों निगम मंडलों को लेकर चर्चा जोरों पर है। जीडीए और साडा किसे दिया जाए। इसका हल निकालने के लिए कई फार्मूला पर विचार मंथन चला । लेकिन हैरान कर देने वाली बात है कि राजनीति के कुशल कारीगर इस मसले पर जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। इनका मानना है कि सरकार की अनायास समय नष्ट करने की आदत बनती जा रही है। कारण सभी अच्छी तरह जानते हैं कि जीडीए किसे मिलेगा और साडा किसे दिया जाएगा। सीधी सी बात है यह दोनों ही विभाग केंद्रीय मंत्री सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खासम खास को दिए जाएंगे। इसलिए इसमें दिमाग खफाना बेवकूफी है। खबरी दाऊ कहिन है कि शायद इसीलिए राजनीति को समझना कठिन कहा जाता है। देखिए ना विशेषज्ञों ने कितनी आसानी से कह दिया कि जीडीए और साडा सिंधिया एवं नरेंद्र सिंह तोमर के विश्वास पात्रों को मिलेगा। जबकि सरकार के सामने इन विभागों का आवंटन चुनौती बन रहा है। अंदर की बात है कि पार्टी हाईकमान को निर्णय लेने में एक एक कदम फूंक फूंक कर रखना पड़ रहा है।
