उज्जैन की तकिया मस्जिद मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से किया इनकार

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उज्जैन। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को गिराए जाने को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट ने मस्जिद को गिराए जाने के राज्य सरकार की कार्रवाई पर रोक लगाने से मना कर दिया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार की कार्रवाई को चुनौती देने वाली और मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए निर्देश देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील को स्पष्ट कर दिया कि उसे उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद ने जोर देकर कहा कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है. उन्होंने पीठ के समक्ष दलील दी कि महाकालेश्वर मंदिर के निकट पार्किंग सुविधा के विस्तार के लिए मस्जिद को गिराया गया था. पीठ के समक्ष तर्क दिया गया कि मस्जिद 1985 से विधिवत अधिसूचित वक्फ संपत्ति थी. शमशाद ने कहा कि मस्जिद अपने विध्वंस तक एक इबादत स्थल के रूप में कार्य करती रही थी।
पीठ ने वकील से कहा कि वह इस याचिका पर विचार करने की इच्छुक नहीं है. अपीलकर्ता मुआवजे सहित कानून के तहत उपलब्ध उपायों का सहारा ले सकते हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील ने हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई कि धर्म के पालन के अधिकार का किसी विशेष स्थान से कोई संबंध नहीं है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने ठोस तर्क दिया है कि यदि आवश्यक हो तो मुआवजा दिया जाएगा. पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा ष्इसमें कुछ भी गलत नहीं है. आपके पास कानून के तहत अपने उपाय मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट उज्जैन के 13 निवासियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने कहा था कि वे नियमित रूप से तकिया मस्जिद में नमाज अदा करते हैं. याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम और मुआवजा एवं पुनर्वास से संबंधित भूमि अधिग्रहण कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था.
मस्जिद 1985 से विधिवत अधिसूचित वक्फ संपत्ति थी, अपने विध्वंस तक इबादत स्थल के रूप में होती थी इस्तेमाल
याचिका में दावा किया गया था कि ष्अधिग्रहण का झूठा मामला बनाने के लिए अतिक्रमणकारियों को मुआवजा गलत तरीके से वितरित किया गया था. याचिका में तर्क दिया गया कि 1985 में वक्फ के रूप में अधिसूचित और इबादत स्थल के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली संरचना को जनवरी में “अवैध रूप से और मनमाने ढंग से” ध्वस्त कर दिया गया था।

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