श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के स्कूलों में श्वंदे मातरमश् का पाठ नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार की सहमति के बिना किया गया था. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. बता दें कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू में राष्ट्रीय गीत के सामूहिक गायन का नेतृत्व किया था. जिसमें संसद सदस्यों, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों ने भाग लिया और राष्ट्रीय गीत का सामूहिक गायन किया.
वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर पूरे देश में तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर संस्कृति विभाग के निर्देश में राष्ट्रीय गीत के 150 वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छात्रों और कर्मचारियों की भागीदारी अनिवार्य कर दी गई थी. वंदे मातरम पर कार्यक्रमों के समन्वय के लिए जम्मू-कश्मीर स्कूल शिक्षा विभाग के निदेशकों को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था।
जम्मू – कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा शुक्रवार, 7 नवंबर को राष्ट्रीय गीत श्वंदे मातरमश् के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम के दौरान जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई थी. कहा था कि यह आयोजन आरएसएस की विचारधारा थोपने के इरादे से किया गया था. घाटी के प्रमुख मौलवी मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले मुस्लिम धार्मिक संगठनों के एक समूह मुत्तहिदा मजलिस उलेमा ने इसे श्गैर-इस्लामीश् करार दिया. उन्होंने एलजी सिन्हा और मुख्यमंत्री अब्दुल्ला से इस श्जबरदस्तीश् वाले निर्देश को वापस लेने की मांग की।
अब्दुल्ला ने कहा, यह फैसला कैबिनेट ने नहीं लिया है. शिक्षा मंत्री ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. हमें इन मामलों में बाहरी निर्देश के बिना ही अपने स्कूलों में क्या होता है, यह तय करना चाहिए।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू में श्वंदे मातरमश् समारोह में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इस गीत ने ष्मां भारती और उनके पुत्रों के बीच के बंधन को मजबूत किया और लोगों को स्वतंत्रता हासिल करने के लिए प्रेरित किया.
सिन्हा ने कहा, ष्मातृभूमि के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और समर्पण हमारे राष्ट्र को विकसित भारत के निर्माण की दिशा में ले जाएगा. युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे इस महान सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं और समाज की प्रगति और समृद्धि में उनका योगदान मां भारती के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 7 नवंबर 1875 को रचित वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे हो गये. वंदे मातरम पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में उनके उपन्यास आनंदमठ के एक अंश के रूप में प्रकाशित हुआ था. मातृभूमि को शक्ति, समृद्धि और दिव्यता का प्रतीक बताते हुए इस गीत ने भारत की एकता और स्वाभिमान की जागृत भावना को काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी और राष्ट्र के प्रति समर्पण का एक स्थायी प्रतीक बन गया. 1900 के दशक के आरंभ में, वंदे मातरम अंग्रेजों से आजादी चाहने वाले भारतीयों का एक राष्ट्रगान बन गया।
मुसलमानों का तर्क है कि राष्ट्रीय गीत, जो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक नारा बन गया था, में भक्ति के कुछ ऐसे भाव हैं जो इस्लामी विश्वास के विपरीत हैं. मीरवाइज के नेतृत्व वाले एमएमयू ने कहा, ष्इस्लाम ऐसे किसी भी कार्य की अनुमति नहीं देता जिसमें सृष्टिकर्ता के अलावा किसी और के प्रति पूजा या श्रद्धा शामिल हो।
जम्मू में वंदे मातरम कार्यक्रम पर मुस्लिम संगठनों की नाराजगी, उमर अब्दुल्ला ने दी सफाई
