केंद्र सरकार ने चिनाब नदी पर लंबे समय से लंबित सावलकोट जलविद्युत परियोजना को दी हरी झंडी

नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बनने वाली 1,856 मेगावाट की सावलकोट जलविद्युत परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी है. इस परियोजना को रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इसे सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद फिर से शुरू किया जा रहा है. इससे पाकिस्तान को एक बार फिर से यह संदेश जाएगा कि भारत पानी को लेकर पुराने समझौतों और रियायतों को सीमित कर रहा है।
लगभग चार दशकों से रुकी हुई सावलकोट परियोजना, चेनाब बेसिन में भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत योजनाओं में से एक है. बता दें कि इस परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी देने की सिफारिश विशेषज्ञ पर्यावरण मूल्यांकन समिति (म्।ब्) ने 26 सितंबर को की थी, जबकि अंतिम मंजूरी 9 अक्टूबर, 2025 को दी गई.
सावलकोट जलविद्युत परियोजना को मंजूरी उस वक्त में दी गई है जब 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा की गई थी. इस संधि के निलंबन के बाद भारत अब सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर स्वतंत्र रूप से बुनियादी ढांचे का विकास कर सकता है. इतना ही नहीं सिंधु जल संधि के तहत, तीन पूर्वी नदियां – रावी, व्यास और सतलुज – का अधिकार भारत को दिया गया.
सावलकोट परियोजना क्या है
भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक परियोजना साल 1960 में हुई संधि के तहत पश्चिमी नदी के पानी के अपने भाग का पूर्ण उपयोग करने के सरकार की कोशिशों का एक विशेष हिस्सा है. इतना ही नहीं परियोजना में 192.5 मीटर ऊंचा गुरुत्व बांध और 1,100 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला जलाशय शामिल है. इसके पूरा हो जाने पर यह पश्चिमी नदियों पर स्थित सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी।
एमएचए ने शीघ्र मंजूर का किया था अनुरोध
गृह मंत्रालय ने इस परियोजना को जून में श्रणनीतिक महत्वश् का बताते हुए पर्यावरण मंत्रालय से शीघ्र मंजूरी देने का अनुरोध किया था. वहीं विद्युत मंत्रालय ने यह भी चेतावनी दी थी कि नए बेसिन-व्यापी अध्ययनों का पहले से शुरू की गई मंजूरी प्रक्रियाओं पर प्रभाव पड़ सकता है।

साथ ही वन सलाहकार समिति ने जुलाई में इसको लेकर पहले ही छूट दे दी थी, जिसमें कहा गया था कि संचयी अध्ययनों के लिए दिशानिर्देश 2013 में जारी किए गए थे।
2.22 लाख पेड़ काटे जाएंगे
सावलकोट परियोजना के अंतर्गत 847.17 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग किए जाने के साथ ही इसके लिए 2.22 लाख से अधिक पेडों को काटा जाएगा. इनमें से 1.26 लाख पेड़ अकेले रामबन जिले में ही हैं. परियोजना दो चरणों में बन रही है, जिससे क्रमशः 1,406 मेगावाट और 450 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।

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