शारदीय नवरात्रि 2025: मां के 9 स्वरूपों का औषधियों से संबंध, प्रयोग करें और लाभ पाएं ग्वालियर। हिंदू शास्त्र में नवरात्रि का विशेष महत्व है. साल में चार बार नवरात्रि आते हैं. एक चौत्र नवरात्रि और दूसरा शारदीय नवरात्रि . इसके आलावा दो बार गुप्त नवरात्रि भी आते हैं. इन गुप्त नवरात्रि में तंत्र-मंत्र की पूजा होती है. वहीं, बाकी दोनों नवरात्रि में शक्ति की पूजा की जाती है. गौरतलब है कि सोमवार से शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत हो चुकी है. इस बार तृतीया तिथि के दो बार होने से नवरात्रि दस दिनों के हैं. आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. बात तीसरे दिन की करें तो इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-आराधना होती है. बहुत कम लोगों को पता है कि मां के नौ रूपों और उनके गुणों का औषधीय महत्व भी है. मां के 9 रूपों से ये औषधियां संबंध रखती हैं. जिनके प्रयोग से जातकों को निरोगी काया मिल सकती है. आइये जानते हैं इनके बारे में. हिन्दू मान्यता के अनुसार,ऋषि मार्कंडेय ने चिकित्सा पद्धति में देवी दुर्गा के 9 औषधीय रूपों का महत्व बताया है. सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी द्वारा इन औषधियों को दुर्गा कवच कहा गया है. नवरात्रि और इसके बाद भी इन औषधियों के प्रयोग से मां दुर्गा के नौ रूपों का तेज और आशीर्वाद आपके भीतर कवच की तरह काम करता है. प्रथम औषधि के रूप में हरड़ को देवी शैलपुत्री का रूप माना गया है. इस औषधि को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है जो मां शैलपुत्री का ही दूसरा नाम और रूप है. उन्होंने कहा कि हरड़ के सात प्रकार हैं और 7 गुण हैं. यह शास्त्र की सबसे पहली व महत्वपूर्ण औषधि है. पथया हरड़ – हित करने वाली औषधि कायस्थ हरड़ – निरोगी शरीर रखने की औषधि अमृता – अमृत के समान असर देने वाली औषधि हेमवती हरड़ – हिमालय में पाई जाने वाली औषधि चेतकी हरड़ – मन में चित्र को प्रसन्न रखने वाली औषधि श्रेयसी हरड़ (शिवा) – कल्याण करने वाली औषधि ज्योतिषाचार्य ने बताया कि द्वितीय औषधि का नाम ब्राह्मी है जो देवी ब्रह्मचारिणी का रूप माना जाती है. ब्राह्मी के नित्य सेवन करने से व्यक्ति की चेतना स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है. वाणी को मधुर बनाने की शक्ति रखने के कारण इसे सरस्वती भी कहा जाता है. तीसरी औषधि का नाम चमसूर औषधि है जोकि देवी चंद्रघंटा प्रतिरूप मानी जाती है उनके गुणों को लिए हुए यह औषधि वात और मोटापा दूर करने के लिए उपयोगी है. इसका एक नाम चंद्रवंती औषधि भी है जो कि हृदय संबंधी रोगों को ठीक करती है. चतुर्थ औषधि है कुम्हड़ा जो कि मां कुष्मांडा की शक्ति से परिपूर्ण है. इसके सेवन से रक्त विकार, वीर्य वृद्धि, पेट के रोगों, मानसिक कमजोरी जैसी समस्या दूर होती हैं. पेठे का सेवन रक्त, पित्त और गैस जैसे विकारों को दूर करता है. पंचम औषधि अलसी को माना गया है यह देवी स्कंदमाता का गुण लिए होती है. अलसी के गुणों का बखान करना अतिशयोक्ति होगी. अलसी के सेवन से गठिया कोलेस्ट्रोल हृदय रोग जैसे असाध्य रोगों से आराम मिलता है. षष्ठम औषधि मोइया नाम की औषधि है. माता कात्यायनी के रूप में औषधि को कंठ संबंधी रोगों के लिए अभेद्य कवच माना जाता है. सत्यम औषधि जो कि मां कालरात्रि के गुण लिए है उसे नागदोन कहा जाता है. सर्वत्र विजय दिलवाने वाली देवी कालरात्रि की यह औषधि हृदय व मानसिक विकारों को दूर करने में सहायक है. अष्टम औषधि का नाम तुलसी है जोकि देवी महागौरी के रूप में प्रत्येक घर में लगाई व पाई जाती है. तुलसी को संजीवनी के समान गुणवंती माना जाता है. यह रक्त में फैले विकारों को दूर करके हृदय को मजबूत बनाती है. नवमी औषधि यानी देवी सिद्धिदात्री शतावरी को माना जाता है. शतावरी के सेवन से बल बुद्धि वीर्य की वृद्धि होती है. हित शोध नाशक औषधि का सेवन करने से अनेक प्रकार की बीमारियां दूर होती हैं. इस प्रकार से न केवल दुर्गा माता के नौ रूप हमारे लिए रक्षा कवच का काम करते हैं बल्कि इनके ही गुणों को लिए हुए यह 9 औषधिया हमें सारे जीवन निरोगी बनाए रखने का सामर्थ्य रखती हैं और हमारे लिए एक सुरक्षा कवच का काम करते हैं. इन औषधियों का सेवन करते समय इन देवियों का ध्यान करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है.

ग्वालियर। हिंदू शास्त्र में नवरात्रि का विशेष महत्व है. साल में चार बार नवरात्रि आते हैं. एक चौत्र नवरात्रि और…