चेन्नई। केंद्र सरकार की वन नेशन, वन इलेक्शन पहल पर बहस जारी है. एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार द्वारा दिए गए मुख्य कारणों में से एक यह है कि बार-बार आचार संहिता लागू किए जाने से विकास कार्य और सामान्य जन-जीवन बाधित होता है. हालांकि, चुनाव आयोग ने कहा है कि यह चुनावों में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण साधन है. वहीं, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की कानूनी शाखा वन नेशन वन इलेक्शन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेगी।
जानकारी के मुताबिक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की कानूनी शाखा 18 जनवरी को अपने तीसरे राज्य सम्मेलन में केंद्र सरकार की वन नेशन, वन इलेक्शन पहल सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेगी. पार्टी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. सेंट जॉर्ज एंग्लो इंडियन स्कूल में आयोजित होने वाले सम्मेलन में राज्य के कानून मंत्री एस. रघुपति पार्टी का झंडा फहराएंगे. पार्टी महासचिव और राज्य के जल संसाधन मंत्री दुरईमुरुगन सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे. वहीं, डीएमके अध्यक्ष और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन शाम को कार्यक्रम को संबोधित करेंगे.
वन नेशन, वन इलेक्शन पर चर्चा करेगी डीएमके
पार्टी ने कहा, केंद्र की वन नेशन, वन इलेक्शन पहल पर एक पैनल चर्चा होगी. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, पूर्व सीईसी एस. वाई. कुरैशी और वरिष्ठ पत्रकार एन. राम इसमें हिस्सा लेंगे। सम्मेलन में द्रविड़म और आर्थिक परिवर्तन सहित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होगी।
वन नेशन वन, इलेक्शन से क्या होगा?
वन नेशन वन, इलेक्शन यानी कि, एक राष्ट्र, एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक में कहा गया है कि देश के चुनाव वाले भागों में आदर्श आचार संहिता लागू किए जाने से संपूर्ण विकास कार्यक्रम रुक जाते हैं. ऐसे में सामान्य जन-जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है. इसमें कहा गया है कि बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू किए जाने से सेवाओं का कामकाज भी प्रभावित होता है और लंबे समय तक जनशक्ति अपने मूल कार्यों से हटकर चुनाव ड्यूटी में लग जाती है.
लेकिन चुनाव प्राधिकरण का मानना है कि आचार संहिता के आवेदन को व्यवधान के रूप में देखना सही नहीं होगा क्योंकि यह अभियान में शामिल सभी हितधारकों को समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण साधन है।
क्या कहा चुनाव आयोग ने?
मार्च 2023 में विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनाव कराने के बारे में पूछे गए एक प्रश्नावली के जवाब में चुनाव आयोग ने कहा था कि आदर्श आचार संहिता की प्रयोज्यता चुनावों के चक्र और आवृत्ति पर निर्भर करती है तथा इसे युक्तिसंगत बनाने से, उस सीमा तक, आदर्श आचार संहिता का समय कम हो जाएगा।
इसमें कहा गया है,चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के परामर्श से स्वैच्छिक आचार संहिता के रूप में इसे विकसित किया है, जिसका सभी हितधारकों द्वारा पालन किया जाना चाहिए तथा यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और विश्वसनीय परिणामों के लिए एक अभिन्न अंग है।
एक साथ चुनाव कराने को लेकर बहस जारी
एक साथ चुनाव कराने के विभिन्न पहलुओं पर चुनाव आयोग के रुख को विधि आयोग और केंद्रीय विधि मंत्रालय में विधि मामलों के विभाग के साथ साझा किया गया है, जिसे एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयकों की जांच कर रही संसद की संयुक्त समिति के सदस्यों को प्रदान किया गया है.
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली वन नेशन, वन इलेक्शन पर उच्च स्तरीय समिति को भी चुनाव आयोग के रुख से अवगत कराया गया. चुनाव आयोग ने कहा कि उसने घोषणा की तिथि से लेकर चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक आदर्श आचार संहिता की अवधि को आवश्यक न्यूनतम रखने के लिए लगातार रणनीति विकसित की है. विधि आयोग ने चुनाव आयोग से इस तर्क पर अपना विचार पूछा था कि समय-समय पर होने वाले चुनावों से आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण नीतिगत पक्षाघात होता है?
