इंडिया गठबंधन में पड़ रही दरार! पहले टीएमसी और अब सपा के बदले तेवर

नई दिल्ली। 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बने विपक्षी पार्टियों के इंडिया गठबंधन पर क्या कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती दिख रही? ये सवाल इसलिए उठे क्योंकि पहले ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने कांग्रेस को आंख दिखाई। अब समाजवादी पार्टी का रुख भी बदला-बदला नजर आ रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि बुधवार संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस की ओर से अडानी का मुद्दा उठाया गया। पार्टी ने अन्य विपक्षी दलों के साथ सदन से वॉकआउट किया। उन्होंने सदन में इस मुद्दे को लेकर प्रोटेस्ट भी किया। हालांकि, इसमें टीएमसी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के सांसद नजर नहीं आए। इसी के बाद सवाल उठे कि क्या इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ रही?
इंडिया गठबंधन में कमजोर पड़ रही कांग्रेस!
एक दिन पहले ही तृणमूल कांग्रेस की ओर से ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का फेस बनाने की मांग उठी। इस पर कांग्रेस की ओर से पलटवार भी हुआ। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इस मांग को एक मजाक करार दिया। हालांकि, टीएमसी की ओर से इंडिया गठबंधन का चेहरा ममता को घोषित करने की मांग तेजी से आगे बढ़ाई जा रही। वहीं अब अडानी मुद्दे पर भी कांग्रेस से अलग टीएमसी ने स्टैंड लिया। इस दौरान समाजवादी पार्टी ने भी मानो कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया।
संसद में टीएमसी-सपा ने दिखाए तेवर
ये चर्चा तब शुरू हुई क्योंकि जब बुधवार को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी सांसदों ने अडानी के मुद्दे पर सदन से वॉकआउट किया। उन्होंने संसद परिसर में प्रोटेस्ट किया तो इस प्रदर्शन में सपा और टीएमसी के एक भी नेता नहीं पहुंचे। संसद में प्रदर्शन के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, सांसद प्रियंका गांधी, आरजेडी की मीसा भारती, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और शिवसेना यूबीटी के सांसद अरविंद सावंत शामिल हुए। हालांकि, समाजवादी पार्टी और टीएमसी के सांसद इस प्रोटेस्ट में नजर नहीं आए।
राहुल गांधी के संभल दौरे पर भी सपा ने उठाए सवाल
कांग्रेस से सपा की दूरी को लेकर चर्चा की यही अकेली वजह नहीं है। संभल मुद्दे पर भी दोनों पार्टियों की राय मेल खाती नहीं दिख रही। ऐसा उस समय नजर आया जब राहुल गांधी बुधवार को संभल जाने के लिए दिल्ली से रवाना हुए। हालांकि, यूपी सरकार की पाबंदियों के चलते कांग्रेस सांसद राहुल गांधी गाजियाबाद के पास दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर से ही वापस लौटना पड़ गया। इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी से जब सवाल किया गया तो उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के फैसले पर सवाल उठा दिए। सपा की ओर से कहा गया कि जब संभल मुद्दे को संसद में उठाया नहीं गया तो वहां जाने का क्या फायदा। इसी से कांग्रेस के अलग-थलग पड़ने संकेत मिलने लगे।
केजरीवाल के एकला चलो की भी गठबंधन में चर्चा
उधर, अरविंद केजरीवाल के भी ममता बनर्जी की राह पकड़ने पर शिवसेना (यूबीटी) ने कहा कि कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए कदम उठाए। शिवसेना (यूबीटी) ने दिल्ली चुनाव में आप के अपने बूते चुनाव लड़ने की घोषणा करने पर रिएक्ट किया। वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से टीएमसी के दूरी बनाए रखने के मद्देनजर विपक्षी एकजुटता के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी से कदम उठाने के लिए कहा। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में इस बात पर जोर दिया कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा बने रहने के लिए मनाने की जरूरत है।
शिवसेना (यूबीटी) की कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण की सलाह
सामना के संपादकीय में कहा गया कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस से दूरी रखकर राजनीति करने की कोशिश कर रही। अब केजरीवाल भी उसी राह पर जा रहे हैं। इस संबंध में कांग्रेस को आत्मनिरीक्षण करने और (विपक्ष की) एकजुटता के लिए कदम उठाने की जरूरत है। संपादकीय में ये भी कहा गयाकि बीजेपी विरोधी गठबंधन में आप का होना जरूरी है। आम आदमी पार्टी अब क्षेत्रीय दल नहीं रहा क्योंकि इसने अन्य राज्यों में भी अपना विस्तार कर लिया है। ऐसे में इंडिया गठबंधन में इसका होना जरूरी है।

लोकसभा चुनाव के बाद मजबूत हुए थे कांग्रेस के हाथ
अब देखना है कि कांग्रेस नेतृत्व इंडिया गठबंधन में अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए क्या कदम उठाता है। सवाल ये भी है कि 2024 के आम चुनावों में जिस तरह से कांग्रेस ने बीते एक दशक के दौरान सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, उसका असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर तो पड़ा ही था। विपक्षी इंडिया गठबंधन में भी पार्टी की पकड़ मजबूत होती नजर आई।
हरियाणा-महाराष्ट्र में हार से बैकफुट पर मुख्य विपक्षी पार्टी
हालांकि, हरियाणा और फिर महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी को तगड़ा झटका लगा है। अब सवाल यही है कि कांग्रेस कैसे वापसी करती है। अब अगले साल दिल्ली और बिहार के चुनाव हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस इन चुनावों में अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर पाएगी?

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