ग्वालियर-चंबल संभाग के कांग्रेस के कद्दावर नेता व पूर्व सांसद रामसेवक बाबूजी लोक सभा चुनाव परिणाम आने के बाद से अपनी ही पार्टी से नाराज चल रहे है। बाबूजी लंबे समय से कोप महल में रहकर पार्टी गतिविधियों से दूरी बनाकर एकांत में बैठ गये है। सचमुच यदि ऐसा है तो कांग्रेस के नजरिये से यह अच्छी खबर नहीं है। पार्टी को जल्दी ही रामसेवक बाबूजी से बात कर इस मामले को हल कर लेना चाहिये। बता दें कि विगत लोकसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा चुनाव में बाबू जी एक मात्र बडा कांग्रेसी चेहरा थे। अखबारों में भी खूब छप रहा था कि बाबूजी कांग्रेस की नैया पार लगा सकते हैं बाबूजी ग्वालियर लोकसभा एक बार जीत भी चुके थे। बाबूजी भी मान कर चल रहे थे कि पार्टी में मेरे से बडा कोई चेहरा है नहीं और लगभग मेरा टिकट पक्का है। इसलिये बाबू जी निश्चिंत थे सच मानिये बाबूजी का मन भी था चुनाव लडने का। जिसकी अंदर ही अंदर वह तैयारियां भी कर चुके थे। बस पार्टी के आदेश के इंतजार में थे। क्षेत्रीय नेता लोग भी बाबूजी को मैदान में लाने के लिये इच्छुक दिख रहे थे। स्वयं प्रवीण पाठक भी बाबूजी को समर्थन की बात कहकर गये थे।ऐसा बाबूजी के करीबियों का कहना है। लेकिन पार्टी ने जब टिकट के लिये प्रवीण पाठक के नाम का ऐलान किया तो बाबूजी का दिल टूट गया। बाबूजी पार्टी से नाराज हो गये। विधानसभा हार चुके प्रवीण पाठक को पार्टी ने लोकसभा का उम्मीदवार तो बनाया लेकिन यह रिस्क कांग्रेस के लिये महंगा साबित हुआ।कांग्रेस पूरे प्रदेश में कही भी जीत का स्वाद नहीं चख पाई। नतीजा यह हुआ कि बाबूजी के बडे बेटे उदयवीर ने नाराजगी में कांग्रेस छोड भाजपा ज्वाइन कर ली। खबरी दाऊ कहिन है कि भइया विपरीत समय में बडे संयम से काम लेना होता है वरना वहीं अंजाम होता है कि आधी को छोड सारी को धावे,आधी रहे न सारी पावे। भाजपाईयों को इसकी भनक लगे इससे पहले ही कांग्रेस को रास्ता निकालना होगा।
कांग्रेस में रामसेवक बाबू जी नाराज, हाईकमान बेखबर!
